सोने की बीमारी - हास्य कविता



आजकल हम अपने आप से बहुत त्रस्त है,
सोने की भयंकर बीमारी से घ्रस्त है,
मौका देखते है ना दस्तूर,
सोते है भरपूर,
एक बार सोते सोते इतना टाइम पास हो गया,
की लोगो को हमारे मरने का आभास हो गया,
लोग हमे चारपाई समेत समशान घाट उठा लाये थे,
गहरी नींद में हम भी कुछ समझ नहीं पाए थे,
कित्नु समशान घात में जैसे ही हमे नहलाने के लिए हमारे ऊपर पानी डाला गया,
हम तोह नींद से जाग गए,
मगर हमे साथ लाने वाले हमे भूत समझ कर भाग गए,
अपन तोह सोने में बचपन से ही बड़े तेज है,
हमे सारे किस्से एक से बढ़कर एक सनसनी खेज है,
बोर्ड की परीक्षा में प्रश्न-पत्र मिलते ही सो गए थे,
आँख तोह तब खुली जब परीक्षा में फेल हो गए थे,
शादी वाले दिन पहले फेरे के बाद ही सो गए,
नींद तोह तब टूटी जब दो-दो बच्चे हो गए,

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