अंधियारों सम्भलो सूरज को आवाज़ लगाने वाला हूँ



अंधियारों सम्भलो सूरज को आवाज़ लगाने वाला हूँ

कितना अच्छा होता कविता चलती रहती,
फूलो में ,कलियों में, छवि में, श्रंगारों में,
कितना अच्छा होता यदि कलम हुआ करती,
उपहारों मीणा बाज़ारो दरबारों में,
घुंघरू की खन-खन पायल की रूम-झूम रहती,
कल्पना लोक में कवी के सुन्दर भावो में
खोये रहते अलमस्त सभी युक के जरन,
केशव में यौवन के उन्मक्त चढ़ावो में,
मेरा आमंत्रण है,
महफ़िल का रंग बदलने वाला है,
शब्दों से भीतर दबा हुआ तूफ़ान मचलने वाला है,
कबतक यूही मुस्कानो का कुल भार उठता जाओ म,
कबतक दुखियो के चीखो के अम्बार लगाता जाऊ म,
में क्रांतिपथी, इन तारो के अंगार बिछाने वाला हु,
अंधियारों सम्भलो सुरक को आवाज़ लगाने वाला हूँ
अंधियारों सम्भलो सुरक को आवाज़ लगाने वाला हूँ ||

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