शायर दरबारी हो जाते है | Ghazal

hindi shayari

रोने में एक खतरा है , तालाब नदी हो जाते है,
हसना भी आसान नहीं है, लब ज़ख़्मी हो जाते है,

स्टेशन से वापिस आकर बूढ़ी आँखें सोचती है,
पत्ते देहाती रहते है, फल शहरी हो जाते है,

बोझ उठाना शौक कहाँ है, मजबूरी का सौदा है,
रहते-रहते स्टेशन पर, लोग कुली हो जाते है,

सबसे हंस कर मिलिए-जुलिये, लेकिन इतना ध्यान रहे,
सबसे हंस कर मिलने वाले, रुस्वा भी हो जाते है,

अपनी अना को बेच के अक्सर लुक़्म-ए-तर की चाहत में,
कैसे-कैसे सच्चे शायर, दरबारी हो जाते है ।

1 टिप्पणी: